New Criminal Laws: 01 जुलाई से लागू हो गए तीन नए कानून, जानें क्या है खासियत

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New Criminal Laws: 1 जुलाई से ही देश में तीन मुख्य आपराधिक कानून भारतीय दंड संहिता 1860, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 और दंड प्रक्रिया संहिता 1973 लागू नहीं रहेंगे। इन के बदले भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 लागू हो गए हैं। इन तीन नए कानूनों को पिछले साल दिसंबर में संसद में पारित किया गया था। अंग्रेजों के जमाने से चले आ रहे तीन मुख्य आपराधिक कानूनों की जगह अब नए कानून देशभर में लागू हो गए हैं।

हमारे जीवन में बढ़ते तकनीकी के दखल को देखते हुए इन कानूनों में भी तकनीकी के अधिकतम उपयोग पर जोर दिया गया है। अधिकतर कानूनी प्रक्रियाओं को आधुनिकरण करने का प्रावधान इन कानूनों में किया गया है। संसद में चर्चा के दौरान सरकार ने भी इन बातों का उल्लेख किया था। तो आइए पहले जानते हैं कि तीन नए आपराधिक कानून क्या हैं?

1 जुलाई से लागू होने वाले तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम हैं। ये कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनयम की जगह होंगे। 12 दिसंबर 2023 को इन तीन कानूनों में बदलाव का बिल लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था। इसके बाद 20 दिसंबर 2023 को लोकसभा और 21 दिसंबर 2023 को राज्यसभा से ये पारित हुए। 25 दिसंबर 2023 को राष्ट्रपति ने तीन विधेयकों को अपनी मंजूरी दी। वहीं 24 फरवरी 2024 को केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि तीन नए आपराधिक कानून इस साल 1 जुलाई से लागू होंगे।

इन कानूनों में अत्याधुनिकतम तकनीकों को शामिल किया गया है। दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार कर इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड्स, ई-मेल, सर्वर लॉग्स, कम्प्यूटर, स्मार्ट फोन, लैपटॉप्स, एसएमएस, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य, डिवाइस पर उपलब्ध मेल और मैसेजेस को कानूनी वैधता दी गई है।

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New Criminal Laws के तहत निर्दोष नागरिकों को नहीं मिलेगी सजा

अभी तक तो सिर्फ आरोपी की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो सकती थी, लेकिन अब पूरा ट्रायल, क्रॉस क्वेश्चनिंग सहित, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से होगा। शिकायतकर्ता और गवाहों का परीक्षण, जांच-पड़ताल और मुकदमे में साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग और उच्च न्यायालय के मुकदमे और पूरी अपीलीय कार्यवाही भी अब डिजिटली संभव होगी। केंद्र सरकार के अनुसार, नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी और इस विषय के देशभर के विद्वानों और तकनीकी एक्सपर्ट्स के साथ बातचीत कर इसे बनाया गया है। सर्च और जब्ती के वक्त वीडियोग्राफी को आवश्यक कर दिया गया है जो केस का हिस्सा होगी और इससे निर्दोष नागरिकों को फंसाया नहीं जा सकेगा। पुलिस द्वारा ऐसी रिकॉर्डिंग के बिना कोई भी चार्जशीट वैध नहीं होगी।

फॉरेंसिक साइंस को मिलेगा बढ़ावा

New Criminal Laws के तहत फॉरेंसिक साइंस को बढ़ावा देने का काम किया गया है। सरकार ने नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी बनाने का निर्णय लिया था। तीन साल के बाद हर साल 33 हजार फॉरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स और साइंटिस्ट्स देश को मिलेंगे। सरकार ने बताया कि इस कानून में हमने लक्ष्य रखा है कि दोष सिद्धि के प्रमाण को 90 प्रतिशत से ऊपर लेकर जाना है। इसके लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है कि सात वर्ष या इससे अधिक सजा वाले अपराधों के क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का दौरा आवश्यक किया गया है। इसके माध्यम से पुलिस के पास एक वैज्ञानिक साक्ष्य होगा जिसके बाद कोर्ट में दोषियों के बरी होने की संभावना बहुत कम हो जाएगी।

मोबाइल एफएसएल की सुविधा

दिल्ली में एक सफल प्रयोग किया गया है जिसमें सात वर्ष से अधिक सजा के प्रावधान वाले किसी भी अपराध के स्थल का एफएसएल टीम दौरा करती है। इसके लिए मोबाइल एफएसएल के कॉन्सेप्ट को लॉन्च किया गया है जो कि एक सफल प्रयोग है और हर जिले में तीन मोबाइल एफएसएल रहेंगी और अपराध स्थल पर जाएंगी। इसके साथ ही नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए पहली बार जीरो एफआईआर की शुरुआत होगी।

New Criminal Laws के तहत बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी आवश्यक

अब यौन हिंसा के मामले में पीड़ित का बयान आवश्यक कर दिया गया है और यौन उत्पीड़न के मामले में बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग भी अब आवश्यक कर दी गई है। पुलिस को 90 दिनों में शिकायत का स्टेटस और उसके बाद हर 15 दिनों में फरियादी को स्टेटस देना आवश्यक होगा। पीड़ित को सुने बिना कोई भी सरकार 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास का केस वापस नहीं ले सकेगी, इससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा होगी।

सभी अदालत होंगे कंप्यूटराइज्ड

2027 से पहले देश की सभी अदालतों को कंप्यूटराइज्ड करने का लक्ष्य रखा गया है। नए कानूनों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए 90 दिनों की समयसीमा तय कर दी गई है और परिस्थिति देखकर ही अदालत आगे 90 दिनों की परमीशन दे सकेगी। इस प्रकार 180 दिनों के अंदर जांच समाप्त कर ट्रायल के लिए भेज देना होगा। कोर्ट अब आरोपित व्यक्ति को आरोप तय करने का नोटिस 60 दिनों में देने के लिए बाध्य होंगे।

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नमस्ते! मेरा नाम शालू चौधरी है। मुझे मेरे मातृ भाषा हिंदी से बेहद लगाव है और इसी कारण मैं इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही हूं। मैं Janlok Times के माध्यम से आप लोगों के लिए आर्टिकल लिखती हूं।

   

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