Bihar Reservation Politics: 24 जुलाई को बिहार विधानसभा में घमासान मच गया जब बिहार विधानसभा में राज्य के संशोधित आरक्षण कानून को संविधान की 9वीं सूची में शामिल किए जाने की मांग को लेकर विपक्षी सदस्यों के भारी हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही बाधित हो गई। अब सवाल यह उठता है कि क्या नीतीश कुमार नौवीं अनुसूची के तहत बिहार में आरक्षण लायेंगे? चलिए पूरे विस्तार से आपको इससे जुड़ी जानकारी देते हैं।
हाईलाइट
आरक्षण की मांग को किया गया रद्द
20 जून को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार को एक बड़ा झटका लगा पटना हाई कोर्ट ने पिछले वर्ष दलित, पिछड़े वर्ग और आदिवासियों के लिए सरकारी नौकरियां तथा शिक्षण संस्थानों में दिए जाने वाले आरक्षण को 50% से बढ़कर 65% किए जाने के उनके फैसले को रद्द कर दिया।
अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने भी नीतीश कुमार की इस मांग को ठुकरा दिया, जबकि नीतीश कुमार को केंद्र सरकार से उम्मीदें थी कि शायद इस मामले में सरकार उनकी कोई मदद कर सकेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि आरक्षण की यह मांग अभी भी बंद नहीं हुई है, हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है।
नौवीं अनुसूची है काफ़ी खतरनाक
नौवीं अनुसूची सरकार को आरक्षण जैसे कानून बनाने की अनुमति देता है जो संविधान द्वारा गारंटीकृत समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। सरकार राजनीतिक कर्म से या निहित स्वार्थ की रक्षा के लिए नौवीं अनुसूची में कानून जोड़ सकती है। जिससे जवाब देही और पारदर्शिता की कमी हो सकती है। आपको बता दें की नौवीं अनुसूची में कानून को शामिल करने से न्यायपालिका की उनकी संवैधानिकता की समीक्षा करने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है जिससे न्यायिक निगरानी का अभाव हो जाता है।
इसके साथ ही नौवीं अनुसूची विभिन्न कानून और नीतियों के लिए और समान व्यवहार प्रदान करती है। यदि एक उदाहरण के तौर पर आपको बताएं तो झारखंड के नए विधेयक में सरकारी पदों में आरक्षण को बढ़ाकर 77% करने की बात कही गई है झारखंड सरकार ने केंद्र सरकार से इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए कहा है। इसके साथ ही नौवीं अनुसूची में केंद्र और राज्य कानून की एक सूची है जिसे किसी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है इसे संविधान के पहले संशोधन अधिनियम 1951 द्वारा जोड़ा गया था।
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